5 सितंबर - शिक्षक दिवस पर हिंदी निबंध
प्रत्येक वह व्यक्ति शिक्षक है , जो हमारे जीवन में हमें उपयोगी सीख और ज्ञान प्रदान करता है । बेशक हम मानव के रूप में जन्मे हैं , किन्तु ज्ञान प्राप्त करना हमारे लिए पग-पग पर अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा का कार्य यद्यपि मृत्युपर्यंत तक जरी रह सकता है ,किन्तु इसका सर्वाधिक महत्व इंसान की बाल्यावस्था में ही होता है। बाल अवस्था में जो ज्ञान प्राप्त होता है वह हमारी स्मृति में सदैव के लिए अंकित हो जाता है। अतः यह निर्विवादित है कि विद्या में शिक्षक का भारी महत्व है ।
भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। ऐसा करके हम अपने शिक्षक को सम्मान देते है। शिक्षक दिवस लगभग हर एक देश में विभिन्न दिनांक पर मनाया जाता है। भारत में शिक्षक की महिमा अनुपम है। यहाँ हम शिक्षक को अध्यापक और गुरु कहकर संबोधन प्रदान करते है।
समाज शास्त्रियों का मत है कि बच्चे का सबसे बड़ा गुरु माँ है । माँ बाल्यकाल में अपने बच्चे को जो शिक्षा देती है , वह उसकी उम्र भर पालन करता है । छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी माँ जिजाबाई ने हमेशा स्त्री का सम्मान करने की शिक्षा दी थी,जिसका उन्होंने सदैव पालन भी किया था । महाकवि कबीर दास ने गुरु की गरिमा को ईश्वर से भी बड़ा दर्जा प्रदान करते हुए कहा ;
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े , काके लागूं पायं ।
बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियौ बताय ।
यानी इशवर कौन है ? इसका साक्षात्कार या ज्ञान देने वाले गुरु ही हैं । वे ईश्वर से भी भेंट करा सकते हैं ।
शिक्षक हमें ज्ञान देते है । विश्व में हमें कैसे रहना हैं , यह बताते हैं । अपने से बड़ों का आदर करना भी हमें शिक्षक ही बतलाते है । किसी ने सत्य ही कहा है - ' गुरु बिना ज्ञान नहीं होता ।' और बिना ज्ञान के मनुष्य पशु सरीखा ही रहता है । विश्व में हर वस्तु को जानने और समझने के लिए हमें योग्य शिक्षक की अनिवार्यता होती है ।
जब हम विद्यालय जाते है , तो सर्वप्रथम शिक्षक हमें अक्षर ज्ञान कराते हैं । फिर गणित , विज्ञान और दूसरे विषय भी पढ़ाते हैं । पढाई के अतिरिक्त शिक्षक हमें परस्पर मिल-जुलकर रहने की शिक्षा भी देते हैं । गुरुजन राजा-महाराजाओं को भी शिक्षा देते थे । राजदरबार में राजगुरु हुआ करते थे ।वे राजा को बताते थे की उन्हें क्या करना उचित है और क्या करना अनुचित है । उनकी ही राय-परामर्श और ज्ञान से राजा अपने राज्य पर शासन करते थे । इस तरह गुरु का स्थान सर्वदा सर्वोपरि है ।
संस्कृत का एक श्लोक है -
" गुरुर्ब्रम्हा, गुरुर्विष्णु , गुरुर्देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परंब्रम्ह , तस्मै श्री गुरवे नमः ।"
यानी गुरु ही ब्रम्हा हैं , गुरु ही विष्णु हैं , गुरु ही महेश ( शिवजी) हैं । गुरु साक्षात् परंब्रम्ह यानी ईश्वर हैं । उन गुरुओं को मेरा नमन हैं ।
यहाँ गुरु की तुलना ब्रम्हा , विष्णु और महेश यानी ईश्वर से की गई है । हमें ज्ञात है कि राम और कृष्ण को ईश्वर का अवतार माना जाता है । परंतु जब उन्होंने संसार में जन्म लिया , तो ज्ञान प्राप्त करने वे भी गुरु के पास गए । कृष्ण के गुरु संदीपन थे, तो राम के गुरु वशिष्ठ थे ।
अतः शिक्षक या गुरु की महिमा अनंत काल से चली आ रही है और आगे भी सदैव रहेगी । अतः शिक्षक का सम्मान करते हुए उनसे ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास सदैव किया जाना चाहिए ।
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